मंगत कथन : सास के ताने से लेकर परमाणु के फार्मूले तक हो रहे लीक..
लीकेज: एक अन्तर राष्ट्रीय समस्या
RNE Special Desk.
लीकेज केवल हमारे देश की ही नहीं बल्कि अन्तर राष्ट्रीय समस्या है। यह जितनी पुरानी है उतनी ही जटिल भी है। यह प्रत्येक क्षेत्र और देश में होती रही है तथा होती रहेगी। यह घर से चालू होकर प्रदेश और राष्ट्र के स्तर पर व्याप्त है। घर में बहू सास की बातें अपने पीहर तक लीक करके उसे खूंखार सिद्ध करने का कोई अवसर नहीं छोड़ती। सरकारी कार्यालयों में तो बॉस अपने स्टाफ में अपना कोई मुखबिर छोड़कर दूसरे कर्मचारियों को काबू रखने का प्रयत्न करता ही है।
पुलिस का काम वैसे तो गुंडा और बदमाश तत्त्वों का सफाया करना होता है किन्तु वह भी लीकेज से सूचनायें प्राप्त करने के लिये इन तत्त्वों में से ही अपने मुखबिर चुनती है क्योंकि शरीफ व्यक्ति और पुलिस का तो हमारे देश में प्रायः छत्तीस का आँकड़ा ही रहता है। आम आदमी अपने सामने हुये अपराध की भी गवाही इसलिये नहीं देना चाहता क्योंकि वह डरता है कि पुलिस उसे किसी लफड़े में डाल देगी। उसकी उनसे रक्षा भी नहीं कर सकेगी। हमारी पुलिस का मूल मंत्र यही है कि प्रत्येक व्यक्ति पर सन्देह करो क्योंकि अधिकतर लोग पुलिस भय के कारण ही शरीफ हैं।
एक बार हमारे देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा था कि किसी योजना में लगा एक रुपया राजधानी से चलकर अपने लक्ष्य तक पहुँचते-पहुँचते दस पैसे ही रह जाता है। कहने का तात्पर्य है कि हमारे देश में लीकेज सर्वाधिक है। यहाँ कई प्रश्न उठते हैं। क्या रुपया कोई तरल पदार्थ था जो राजधानी से चलते ही टपकने लगा था और अपने गन्तव्य तक पहुँचा तो मात्र दस पैसे ही रह गया। यह बात कोई और कहता तो मैं कह देता कि यह अपनी कुड़न निकालने के लिये सरकार को बदनाम कर रहा है, किसी विपक्षी ने झूठा बयान दिया है किन्तु यह प्रधानमंत्री का कथन था। यह सार्वजनिक रूप से कहा था इसलिये सर्वथा सत्य मानने के अतिरिक्त और चारा भी नहीं है। इसमें कहने वाले ने लीकेज की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं छोड़ी। अब सवाल यह उठता है कि लीकेज है तो करने वाले कौन हैं? इस बात का भी पता होना चाहिये। यदि पता है तो उन्हें पकड़ा क्यों नहीं जाता? मात्र इशारा कर देने से क्या लीकेज रुक जायेगी? जब प्रधानमंत्री यह कहते हैं तो इसे कौन रोकेगा?
हमारे देश में प्रत्येक क्षेत्र में लीकेज की समस्या प्राचीन काल से ही चली आ रही है इसलिये यह जानकर कि अमुक क्षेत्र में लीकेज है, किसी को आश्चर्य भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य को ‘संजीवनी’ विद्या का ज्ञान था। वे किसी भी मृतक को जीवित कर सकते थे। उनकी इस विद्या के कारण देवता जब दैत्यों से पराजित होने लगे तो उन्होंने देवगुरु बृहस्पति के पुत्र कच को यह विद्या सीखने के लिये शुक्राचार्य के पास भेजा। उन्होंने कच को अपना शिष्य तो बना लिया किन्तु उसे ‘संजीवनी’ विद्या नहीं सिखलाई। काफी समय बीत गया। दैत्यों का तंत्र इतना सुदृढ़ था कि कहीं लीकेज थी ही नहीं। पर कहते हैं कि जहाँ चाह वहाँ राह। दैत्य गुरु की पुत्री कच को मन ही मन प्रेम करने लगी। यह बात भी लीक हो गई। दैत्यों ने सोचा ऐसे तो गड़बड़ हो जायेगी क्योंकि प्रेमी अपना उद्देश्य प्राप्त करने के लिये किसी भी स्तर तक जा सकता है। उन्होंने कच की हत्या कर दी और जलाकर उसकी राख को वारुणी में घोलकर गुरु को पिलादी। इससे एक बात का पता चलता है कि वारुणी कोई घटिया किस्म की ही दारु होती होगी। जिसमें राख आदि पदार्थ यूं ही मिले रहते होंगे जैसे हमारे यहाँ के पिछड़े इलाकों के पानी में अनेक तत्त्व मिले रहते हैं। यह सब कुछ हुआ परन्तु देवयानी के प्रेम ने उसे पुनर्जीवित करवा लिया। तभी से यह परम्परा चल पड़ी कि लीकेज के लिये पहले वारुणी का प्रयोग खुलकर करें और करवायें। यह तंत्र सौ प्रतिशत सिद्ध होगा।
यह लीकेज क्या है और कैसे होती है? इसका एक प्रयोग दक्षिण के महाराज कृष्णदेव के दरबारी विदूषक तेनालीरामन् ने करके बतलाया। एक बार उनसे महाराज कृष्णदेव ने पूछा कि इतना धन खर्च करने के बावजूद राज्य में पूर्णतः विकास क्यों नहीं हुआ? तेनालीरामन् ने कहा कि महाराज आज शाम को दरबार लगायें मैं सब के सामने प्रयोग करके समझा दूँगा कि विकास क्यों नहीं हो रहा है? संध्या को दरबार लगा। तेनालीरामन् ने बर्फ का एक बड़ा टुकड़ा उठाकर पास बैठे मंत्री के हाथ में देते हुये कहा, ‘मान लीजिये यह विकास है। इसे सभी के हाथों में होते हुए महाराज तक पहुँचना है।’ वैसे ही किया गया। पूरे दरबार में चक्कर काट जब महाराज के हाथों में पहुँचा तो बर्फ की एक छोटी सी डली मात्र रह गया था। तेनालीरामनू बोले, ‘महाराज ! आप देख ही रहे हैं कि इस विकास में सभी के हाथ गीले हुये हैं। आप तक यह पूर्ण रूप में कैसे पहुँचेगा? इन शब्दों में वे बिना किसी की शिकायत किये सब कुछ बतला गये। भ्रष्टाचार हमारे देश में रक्तबीज के समान फैल रहा है। एक को मारो तो सैंकड़ों पैदा हो जाते हैं। आज अधिकतर व्यक्तियों के आचरण का हिस्सा बन चुका है भ्रष्टाचार ! मन्दिरों से लेकर देश की संसद तक इसकी जड़े फैल चुकी हैं। इसे जड़ से समाप्त करने के लिये रक्तबीज की पौराणिक कथा को दोहराना पड़ेगा।
लीकेज के कारण ही यहाँ विदेशी आक्रमणकारी आये और ढोल में पोल देखकर यहीं जम गये। नाम किस-किस का लूं। जो थोड़ा भी महत्त्वाकांक्षी था किन्तु कमजोर पड़ता था उसने आगे बढ़ने के लिये लीकेज का सहारा लिया तथा अपना मनोरथ पूरा किया। जयचन्द को तो व्यर्थ में ही बदनाम किया जाता है। आप यह सब जानने के लिये इतिहास देख सकते हैं। वहाँ आपको लीकेज ही लीकेज दिखलाई पड़ेगी। यहाँ तक कि आज प्रजातंत्र के युग में भी उसी प्रकार लीकेज जारी है। लीकेज करना और करवाना दोनों ही गैरकानूनी हैं परन्तु प्रत्येक देश अपने फायदे के लिये दूसरे देशों में अपने गुप्तचर भेजकर आर्थिक, सामरिक और अन्य प्रकार के रहस्यों की लीकेज करवाने की चेष्टा करता है। इस प्रकार गुप्तचर भेजने वाला देश दूसरे देश की तकनीक चुराकर अपना विकास करता है। यांत्रिकी और औषधियों के विषय में रहस्य इतने गुप्त रखे जाते हैं कि एक फार्मूले को कई भागों में विभक्त कर कई व्यक्तियों में बाँट दिया जाता है। वे एक-दूसरे के विषय में कुछ नहीं जानते। कहते हैं कि इसी कारण आज तक कोई दूसरी कम्पनी ‘कोकाकोला’ के फार्मूले को चुरा नहीं सकी है। वहाँ उन्होंने लीकेज की सारी संभावनायें ही बंद कर दी हैं। देखें कितने दिन? गुप्तचरों के माध्यम से कोई देश लीकेज द्वारा वह तकनीक खरीद लेता है जैसे पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिक ने यह तकनीक दूसरे देश को महंगे दामों पर बेच डाली। फिर जब मामला खुला तो उसे सजा भी भुगतनी पड़ी। यह कोई पहली और अन्तिम घटना नहीं थी।
यह भी कहा जाता है कि भारत को शिकस्त देने के लिये अमेरिका ने पाकिस्तान के लिये अपनी परमाणु तकनीक जान-बूझकर लीक कर दी। सर्वप्रथम परमाणु बम अमेरिका ने ही बनाया था। यदि उनके यहाँ से यह तकनीक लीक न होती तो आज दुनिया के इतने देश परमाणु सम्पन्न न होते और दुनिया एक भय की छाया में जीवन न जी रही होती। अब कौन देश गुपचुप परमाणु बम के निर्माण में लगा है तथा कौन उसे अपनी तकनीक लीक करके पहुँचा रहा है यह पता चलते ही परमाणु बम सम्पन्न देश उन दोनों देशों को धमकाते हैं कि वे ऐसा न करें। फिर भी यदि वे नहीं मानते तो उन पर भाँति-भाँति के आर्थिक प्रतिबंध लगाकर उनकी प्रगति को रोकने के प्रयत्न किये जाते हैं। खुद पंडितजी बैंगन खायें दूसरों को उपदेश। अमेरिका आज तक इसी प्रकार की चौधराहट दुनिया पर जमाने की कोशिश करता रहा है।
दफ्तरों से पूरी फाइलें लीक होने के साथ-साथ गायब भी हो जाती हैं। अदालतों के फैसले लीक हो जाते हैं। सचिवालयों से अति आवश्यक और गोपनीय सूचनायें लीक हो जाती हैं। कभी-कभी तो देश की सुरक्षा के कागजात भी लीक होते सुने हैं। कमाल तो तब होता है जब किसी मित्र देश से यह सूचना लीक होकर आती है कि आतंकवादी हमारे देश में कैसे दहशत फैलानेवाले हैं। अमुक स्थान पर हमला करने वाले हैं। और तो और सीलबंद गोदामों से लाखों टन खाद्यान्न लीक हो जाता है। ताले वैसे के वैसे लगे रहते हैं। जब तक चोरी की सूचना लीक हो तब तक माल खुर्दबुर्द कर दिया जाता है। आजकल बैंकों से नकदी तक की लीकेज हो रही है। जब तक पता चले अपराधी समुद्र पार। वह सोने की चिड़िया जिस पेड़ की डाली पर भी बैठेगी वह देश उसे पिंजरे में फंसवाने के लिये क्यों उड़ायेगा? नहरों से पानी लीक होकर बड़े-बड़े किसानों के खेतों में फैल रहा है। वे अच्छी फसल प्राप्त करने के साथ मुआवजे के भी हकदार हो जाते हैं। छोटे किसान अपनी जलती हुई फसल को बिटर-बिटर ताकते रह जाते हैं। जनहित फण्ड से करोड़ों रुपये लीक होकर ठगों के हाथों में चले जाते हैं। ठग लीक होकर विदेश पहुँच जाते हैं। सरकार ताकती रह जाती है। यहाँ तक कि राज्यों और देश के बजट का लीक होने का खतरा भी बराबर बना रहता है। किसी को इसका कोई इलाज भी दिखलाई नहीं पड़ रहा है।
इस लीकेज की समस्या से आज का नौजवान भी कम त्रस्त नहीं है। वह नौकरी के लिये परीक्षा की कठिन तैयारी करके परीक्षा देकर बाहर आता है तो पता चलता है कि पेपर लीक हो चुका है। परीक्षा दुबारा देनी पड़ेगी। सरकार जाँच का आदेश देती है। यहाँ भी लीकेज हो गई। घपला करने वाले बड़े-बड़े मगरमच्छों का कहीं नाम भी नहीं होता। पकड़े जाते हैं दो बाबू एक चपरासी और दो वे अध्यापक जो विद्यार्थियों को कोचिंग दिया करते थे। बाकी सब लीकेज होकर कहीं बाहर फिसल गये। पता नहीं यह बात अब तक लीक होकर देश के शासकों और प्रशासकों तक क्यों नहीं पहुँची कि इस तंत्र से आम जन का विश्वास उठ चुका है। हालात खतरनाक हैं लेकिन उनके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती। लीकेज करने और करवाने वाले दोनों ही पक्ष कई बार बड़े लाभ में रहते हैं किन्तु पिस जाती है जनता। इसे बिल्कुल रोक पाना तो असंभव है किन्तु यदि ईमानदारी से प्रयास किये जायें तो एक निश्चित सीमा तक सफलता भी मिल सकती है।